इस वक्त एम्स के फोरेंसिक विभागाध्यक्ष का पद संभाल रहे डा. टीडी डोगरा उस वक्त सहायक प्राध्यापक थे, जब उन्हें दो अन्य विशेषज्ञों के साथ इस दिवंगत नेता के शव का पोस्टमार्टम करने के काम में लगाया गया था. डोगरा ने बताया कि अदालत में मुकदमे की सुनवाई के दौरान जब वह अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में पेश हुए, उस वक्त उनका सिंह से आमना सामना हुआ था.
विश्राम के दौरान, वे शौचालय गये जहां उनकी मुलाकात सिंह से हुई. डोगरा ने बताया कि सतवंत सिंह ने वहां उन्हें व्यंग्यपूर्ण लहजे में कहा, ‘‘माफ कीजिए डाक्टर साहब, मेरी वजह से आपको तकलीफ हो रही है.’’ उसने डा डोगरा से पंजाबी लहजे में हिंदी में कहा, ‘‘उन्हें कितनी गोलियां लगी थी?’’ हालांकि, चिकित्सक से उसे इसका कोई जवाब नहीं मिला.
गौरतलब है कि हत्या के बाद बेअंत सिंह को सरुक्षाकर्मियों ने मार गिराया था, जबकि सतवंत सिंह को 10 गोलियां लगी थी और उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। सतवंत को एक अन्य सहयोगी कहार सिंह के साथ मौत की सजा सुनाई गई, जिसे छह जनवरी, 1989 को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई.
डा. डोगरा ने बताया, ‘‘शुरूआत में मुझे एक पुलिसकर्मी से पता चला कि गोली लगने के बाद उनको :इंदिरा को: एम्स लाया गया है. मुझे 31 अक्तूबर 1984 को ढाई बजे पोस्टमार्टम करने के लिये एक फोन आया. मैं डा. डीवी सहारन और डा. पीसी दीक्षित के साथ था.’’ उनके द्वारा तैयार की गई पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक इंदिरा की मौत गोलियों के जख्म से अधिक मात्रा में खून बहने के कारण हुई.
डा. डोगरा ने बताया, ‘‘हमलावरों ने उन पर 31 गोलियां चलाई थी, जिसमें से उन्हें 30 गोलियां लगी. 23 गोलियां तो उनके शरीर को भेदते हुए बाहर निकल गई, जब सात गोलियां शरीर के अंदर ही रह गई थी.’’ उन्होंने बताया कि इस दिवंगत नेता का पोस्टमार्टम ऑपरेशन कक्ष में ही दोपहर तीन बजे शुरू किया गया और यह प्रक्रिया लगभग शाम साढ़े पांच बजे तक चली.
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