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बुधवार, 31 मार्च 2010


संसद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का फाइल फोटो पीटीआई फोटो

  • शिक्षा का अधिकार कानून कल से होगा लागू


नयी दिल्ली, 31 मार्च : शिक्षा को सभी बच्चों का मौलिक अधिकार बनाने वाला ऐतिहासिक कानून कल से लागू हो जाएगा। यह सीधे तौर पर लगभग एक करोड़ बच्चों को फायदा पहुंचायेगा, जो अभी स्कूल नहीं जाते हैं।

यह कानून कितना अहम है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए कल राष्ट्र को संबोधित करेंगे और इस कानून के विभिन्न पहलुओं का जिक्र करेंगे।

स्कूल में बीच में ही पढ़ाई छोड़ चुके बच्चे या कभी किसी शैक्षणिक संस्थान की चौखट तक भी नहीं पहुंच सकने वाले लगभग 92 लाख बच्चें प्राथमिक शिक्षा पा सकेंगे क्योंकि यह कानून छह से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों को स्कूल पहुंचाने के कार्य को सुनिश्चत करने के लिये स्थानीय और राज्य सरकार सरकारों पर बाध्यकारी होगा।

कंेद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस कानून से जुड़े सभी मुद्दों का हल कर लिये जाने और 55:45 के अनुपात में कोष की साझेदारी पर सहमत होने के बाद इसे लागू किया जा रहा है।

जारी

सोमवार, 29 मार्च 2010

नेपाल के लिए चीन और भारत बराबर

prachandकाठमांडू। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्नी पुष्पकमल दहल प्रचंड ने भारत में जारी माओवादी गतिविधियों से नेपाली माओवादियों के तार जुड़े होने की आशंकाओं को निमरूल करार देते हुए आज कहा कि मित्न देश भारत में इसे लेकर भ्रामक प्रचार किया जा रहा है।



प्रचंड ने यहां योग गुरू स्वामी रामदेव के योग विज्ञान शिविर में योग साधाव रूप में भाग लेने के बाद भारत से आए पत्नकारों से कहा कि नेपाली माओवादियों के तार भारत में जारी माओवादी गतिविधियों से जुड़े होने की आशंकाएं निमरूल हैं। दोनों देशों के माओवादियों में संगठनात्मक और संरचनात्मक अंतर है।



नेपाली व म्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) (यूएनसीपीएम) अधयक्ष ने कहा, हमारे लिए नेपाल की जनता के हित सर्वोपरि हैं और भारत के साथा पारस्परिक संबंधों में प्रगाढता लाना हमारा मुख्य ध्येय है। हालांकि एक प्रश्न के उत्तर में प्रचंड ने कहा कि नेपाल के लिए चीन का महत्व कम नहीं है। उनकी नजर में नेपाल का संबंध भारत और चीन के साथा बराबर का होना चाहिए।



तमाम बाधाओं के कारण संविधान निर्माण का काम निर्धारित अवधि में पूरा नहीं हो पाने की खबरों के बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा, संविधान बनाने का काम समय पर समाप्त करने की पूरी कोशिश की जा रही है और मुझे उम्मीद है कि यह काम समय पर पूरा हो जाएगा।



योग साधाना के महत्व पर प्रकाश डालते हुए यूएनसीपीएम अध्यक्ष ने कहा कि नेपाल में साम्यवाद और योग विज्ञान के संयुक्त प्रयास से शांति एवं भौतिक और दैहिक खुशहाली लाने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अपने जल संसाधानों का इस्तेमाल कर नेपाल बिजली उत्पादन के क्षेत्न में उचित मुकाम हासिल कर सकता है और पड़ोसी देश भारत को भी बिजली की आपूर्ति कर सकता है। इस बारे में उन्होंने प्रधानमंत्नी के रूप में भारत के राजकीय दौरे पर वहां की सरकार से विचार विमर्श किया था।



इससे पहले प्रचंड ने दीप प्रज्वलित करके आज के शिविर की शुरूआत की । इस अवसर पर उन्होंने योग और आयुर्वेद के महत्व पर प्रकाश डालते हुए अपने अनुभव बांटे। यूएनसीपीएम अधयक्ष के अनुसार, उन्होंने अपने जीवन में भी योग और आयुर्वेद का महत्व महसूस किया है।



इससे पहले स्वामी रामदेव ने भी कहा कि माओवाद और योग-विज्ञान एवं अधयात्म के योग से नेपाल में शांति एवं समृद्धि का इतिहास रचा जाएगा। उन्होने कहा कि नेपाल यदि अपनी जवानी, जंगल, जड़ी-बूटियों एवं अन्य
प्राकृतिव संसाधानों का उचित इस्तेमाल करे तो वह समृद्ध राष्ट्र बनकर उभरेगा। उन्होने कहा कि केवल जल स्रोतों का इस्तेमाल करके ही नेपाल की अर्थाव्यवस्था विकसित हो सकती है।

सतवंत सिंह और एम्स

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का हत्यारा सतवंत सिंह यह जानने को उत्सुक था कि दिवंगत नेता को कितनी गोलियां लगी थी. इंदिरा गांधी के शव का पोस्टमार्टम करने वाले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सक ने यह दावा किया है. गौरतलब है कि इस दिवंगत नेता के शव पर इस तरह के 30 गहरे जख्म थे.

इस वक्त एम्स के फोरेंसिक विभागाध्यक्ष का पद संभाल रहे डा. टीडी डोगरा उस वक्त सहायक प्राध्यापक थे, जब उन्हें दो अन्य विशेषज्ञों के साथ इस दिवंगत नेता के शव का पोस्टमार्टम करने के काम में लगाया गया था. डोगरा ने बताया कि अदालत में मुकदमे की सुनवाई के दौरान जब वह अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में पेश हुए, उस वक्त उनका सिंह से आमना सामना हुआ था.

विश्राम के दौरान, वे शौचालय गये जहां उनकी मुलाकात सिंह से हुई. डोगरा ने बताया कि सतवंत सिंह ने वहां उन्हें व्यंग्यपूर्ण लहजे में कहा, ‘‘माफ कीजिए डाक्टर साहब, मेरी वजह से आपको तकलीफ हो रही है.’’ उसने डा डोगरा से पंजाबी लहजे में हिंदी में कहा, ‘‘उन्हें कितनी गोलियां लगी थी?’’ हालांकि, चिकित्सक से उसे इसका कोई जवाब नहीं मिला.

गौरतलब है कि हत्या के बाद बेअंत सिंह को सरुक्षाकर्मियों ने मार गिराया था, जबकि सतवंत सिंह को 10 गोलियां लगी थी और उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। सतवंत को एक अन्य सहयोगी कहार सिंह के साथ मौत की सजा सुनाई गई, जिसे छह जनवरी, 1989 को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई.

डा. डोगरा ने बताया, ‘‘शुरूआत में मुझे एक पुलिसकर्मी से पता चला कि गोली लगने के बाद उनको :इंदिरा को: एम्स लाया गया है. मुझे 31 अक्तूबर 1984 को ढाई बजे पोस्टमार्टम करने के लिये एक फोन आया. मैं डा. डीवी सहारन और डा. पीसी दीक्षित के साथ था.’’ उनके द्वारा तैयार की गई पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक इंदिरा की मौत गोलियों के जख्म से अधिक मात्रा में खून बहने के कारण हुई.

डा. डोगरा ने बताया, ‘‘हमलावरों ने उन पर 31 गोलियां चलाई थी, जिसमें से उन्हें 30 गोलियां लगी. 23 गोलियां तो उनके शरीर को भेदते हुए बाहर निकल गई, जब सात गोलियां शरीर के अंदर ही रह गई थी.’’ उन्होंने बताया कि इस दिवंगत नेता का पोस्टमार्टम ऑपरेशन कक्ष में ही दोपहर तीन बजे शुरू किया गया और यह प्रक्रिया लगभग शाम साढ़े पांच बजे तक चली.

नलिनी मुरुगन

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में दोषी नलिनी मुरुगन को समय से पहले नहीं छोड़ा जाएगा। तमिलनाडु सरकार ने तय किया है कि नलिनी को पूरी सजा काटनी होगी। इससे पहले उसे नहीं छोड़ा जा सकता है। नलिनी इस समय वेल्लोर की विशेष जेल में बंद है।

एडवोकेट जनरल पीएस रमन ने मद्रास हाईकोर्ट को भरोसा दिलाया था कि सरकार इस संबंध में गठित सलाहकार समिति की रिपोर्ट के मद्देनजर नलिनी की रिहाई पर अंतिम निर्णय सोमवार को ले लेगी। इस रिपोर्ट की एक प्रति हाईकोर्ट में 11 मार्च को दाखिल की गई थी। रमन ने यह भी कहा था कि सरकार को सलाहकार समिति से एक स्पष्टीकरण की दरकार थी।

नलिनी की मौत की सजा को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद पहले ही उम्र कैद में बदला जा चुका है। सलाहकार समिति ने नलिनी व 10 अन्य कैदियों से 20 जनवरी को मुलाकात की थी। इस आधार पर उसने फरवरी के पहले सप्ताह में रिपोर्ट तैयार की थी।

1991 में गिरफ्तार की गई नलिनी ने तमिलनाडु कारावास अधिनियम व सीआरपीसी की धारा 433 ए के तहत अपनी जल्द रिहाई की मांग की थी। सीआरपीसी की इस धारा में उम्र कैद की सजा काट रहा कैदी 14 वर्ष जेल में बिताने के बाद रिहाई के लिए गुहार लगा सकता है।

अमिताभ बच्चन ब्रैंड ऐंबैसडर

बीजेपी के सीनियर नेता और ओलिंपिक संघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष विजय कुमार मल्होत्रा ने कहा है कि बॉलिवुड के

मेगास्टार अमिताभ बच्चन की छवि को मद्देनजर रखते हुए उन्हें भारत में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों का मुख्य ब्रैंड ऐंबैसडर बनाया जाना चाहिए। मल्होत्रा राष्ट्रमंडल खेलों के कार्यकारी बोर्ड के सदस्य भी हैं। उन्होंने इस संबंध में ओलिंपिक संघ और राष्ट्रमंडल खेलों की आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को पत्र लिख कर यह सुझाव दिया है।

मल्होत्रा ने अपने पत्र में लिखा है कि राष्ट्रमंडल खेल भारत के इतिहास में मील का पत्थर साबित होंगे जिनमें भारत की खेल प्रतिभा का ही नहीं, बल्कि देश की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत का भी प्रदर्शन होगा। इसलिए राष्ट्रमंडल खेलों के लिए ब्रैंड ऐंबैसडर की नियुक्ति बहुत महत्वपूर्ण होगी। उन्हें देश का प्रतिनिधित्व करने में गर्व महसूस होगा। वह धन के लिए नहीं, बल्कि देश के हित में ऐसा करेंगे। इसके लिए हम अमिताभ बच्चन के नाम का सुझाव देते हैं। इस संबंध में मेरा सुझाव है कि राष्ट्रमंडल खेलों के मुख्य ब्रैंड ऐंबैसडर के तौर पर अमिताभ बच्चन को नियुक्त करना चाहिए जो देश की मध्य पीढ़ी का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। इतना ही नहीं वह देश के युवाओं के लिए भी आदर्श हैं।

अमिताभ 1982 के दिल्ली एशियाड खेलों के भी ब्रैंड ऐंबैसडर रहे हैं। उन्हें फिर से यह सम्मान दिया जाना चाहिए। मल्होत्रा ने लिखा कि कुछ ब्रैंड ऐंबैसडर की घोषणा की जा चुकी है और कुछ के नाम जल्द ही घोषित किए जाने हैं। ऐसे में केवल साफ सुथरी छवि वाले ऐसे सिने स्टार्स, खिलाड़ियों और अन्य मशहूर हस्तियों को यह जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए जो धन लिए बगैर इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए तैयार हों।

गुरुवार, 25 मार्च 2010

नैनो में आग

जब सतीश सावंत मालाओं से सजी अपनी नई-नवेली नैनो को लेकर शोरूम से निकले, तो उनका मन झूम रहा था। घर पर उनके परिवारवाले भी अपनी नई
गाड़ी का इंतजार कर रहे थे। लेकिन उन्होंने सोचा भी नहीं था कि वह घर गाड़ी को नहीं, बल्कि बस एक बुरी खबर लेकर जाएंगे।

सावंत की कार को एक डीलर का एक एम्पलॉयी सावंत के घर लेकर जा रहा था, लेकिन शोरूम से निकलते ही गाड़ी में आग लग गई। कुछ ही देर में गाड़ी और उसके साथ सावंत की उमंगें धू-धू कर जल गईं।

इस घटना से टाटा मोटर्स को भी बड़ा सदमा लगा है। उसे समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा कैसे और क्यों हुआ। कंपनी के एक प्रवक्ता ने कहा कि हम अब भी नहीं समझ पा रहे हैं कि ऐसा कैसे हुआ और इसके पीछे वजहें क्या थीं।

इससे पहले भी कुछ ऐसी घटनाएं हुई थीं, जब नैनो में धुआं उठने लगा था। लेकिन कंपनी का कहना है कि इस घटना और पहले हुई घटनाओं में कोई कनेक्शन नहीं है। प्रवक्ता ने कहा कि यह एक अलग घटना है और इसका पहले हुई घटनाओं से कोई लेनादेना नहीं है। प्रवक्ता के मुताबिक कार से धुआं निकलने की घटनाएं एक स्विच में फॉल्ट की वजह से हुई थीं। इसके लिए सड़क पर आ चुकी सभी गाड़ियों के पार्ट्स की अच्छी तरह से जांच कर ली गई थी।

कंपनी ने सावंत की गाड़ी में लगी आग की जांच शुरू कर दी है।

सुप्रीम कोर्ट में फिर होगी महिला जज

नई दिल्ली चार साल के अंतराल के बाद सुप्रीम कोर्ट में फिर एक महिला जज के आने की तैयारी है। कॉलेजियम ने झारखंड हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा के नाम को हरी झंडी दे दी है। सूत्रों ने बताया कि जस्टिस मिश्रा के साथ मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एचएन गोखले के नाम को भी मंजूरी दी गई है।



इनके नाम राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए विधि मंत्रालय को भेज दिए गए हैं। इस समय सुप्रीम कोर्ट में 28 जज हैं जबकि जजों की स्वीकृत संख्या 32 है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के स्वर्ण जयंती वर्ष में नियुक्त जस्टिस रूमा पाल 2006 में रिटायर हो गई थीं।



जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा झारखंड हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस हैं। उन्हें 1994 में पटना हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। वे राजस्थान हाईकोर्ट में भी करीब 14 साल जज रह चुकी हैं। उनके पिता सतीश चंद्र मिश्रा पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे।

रविवार, 21 मार्च 2010

रांदेवू ने आईपीएल टीम खरीद सबको हैरत में डाला


Bhaskarमुंबई. रांदेवू स्पोर्ट्स वर्ल्‍ड लिमिटेड ने आईपीएल की एक टीम की फ्रेंचाइजी खरीदकर कोच्चि को क्रिकेट के नक्शे पर उभार दिया है। यह न सिर्फ फ्रेंचाइजी खरीदने की दौड़ में शामिल प्रतिद्वंद्वियों, बल्कि आईपीएल अध्यक्ष ललित मोदी के लिए भी चौंकाने वाला रहा है।



चेन्नई में हुई नीलामी में फ्रेंचाइजी खरीदने के लिए जहां कारपोरेट घराने वीडियोकॉन अदाणी ग्रुप रेस में थे, वहीं सलमान खान-कैटरीना कैफ व सैफ अली खान-करीना कपूर जैसे बॉलीवुड सितारे भी वहां मौजूद थे। वहां किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि आईपीएल की टीम केरल के एक अनजान से बिजनेस ग्रुप की झोली में आएगी। वैसे, इसमें विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर की मुख्य भूमिका रही है, जिन्होंने रांदेवू को बोली लगाने के लिए प्रेरित किया।



थरूर ने ‘डीएनए’ से कहा, ‘उम्मीद है कि अब केरल से और क्रिकेट प्रतिभाएं सामने आएंगी।’ वहीं, मोदी ने कहा, ‘ईमानदारी से कहूं, तो मुझे इतनी बड़ी बोली लगने से हैरत ही हुई है। दोनों फ्रेंचाइजी से कुल मिलाकर 3235 करोड़ रुपए आए हैं। यह राशि आईपीएल की पहली आठ टीमों से मिली कुल राशि से करीब 25 फीसदी अधिक है।’ उन्होंने कहा कि रांदेवू (1533 करोड़) द्वारा वीडियोकॉन (1471 करोड़), अदाणी ग्रुप (1449 करोड़), पुणो कसोर्टियम (1200 करोड़) से ज्यादा बोली लगाना तो उम्मीदों से परे था। हालांकि, सहारा इंडिया द्वारा पुणो की फ्रेंचाइजी खरीदने से किसी को ज्यादा हैरत नहीं हुई।

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

गुलज़ार

गीतकार गुलज़ार की गज़ल की पंक्तियां हैं- 'वक़्त रहता नहीं कहीं टिककर, इसकी आदत भी आदमी सी है.

मदरसा में आईआईटी की तैयारी


मदरसा

आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए रहमानी-30 काफ़ी लोकप्रिय हो रहा है.

भारत में मुसलमानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. ऐसे में किसी मदरसा में मिल रही तालीम से क्या मुसलमान छात्रों का भला हो सकता है?

इस सवाल का जवाब हमें बिहार की राजधानी पटना में मिलता दिखाई दे रहा है.

बिहार में आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी को लेकर सबसे पहले अभ्यानंद ने सुपर-30 के नाम से एक अनोखा प्रयोग किया था जो काफ़ी सफल रहा.

इसी सुपर-30 की कामयाबी से प्रेरित होकर पटना के एक मदरसे में रहमानी-30 की शुरुआत की गई. ये मदरसा क़रीब 100 वर्ष पुराने मकान में चलता है.

इस मदरसा में देश के उच्च तकनीकी संस्थान यानि आईआईटी में दाख़िले की तैयारी हो रही है.

विद्यार्थियों का एक साथ रहना, खाना और पढ़ाई करना मदरसा का मूलमत्र है. यहां कोई भेदभाव नहीं है, सब बराबर है.

मौलाना वली रहमानी

यहां विद्यार्थियों को न तो बैठने के लिए बेंचे हैं और न ही पढ़ाई करने के लिए पर्याप्त रोशनी.

इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद मौलाना वली रहमानी अत्यंत ग़रीब मुसलमानों के प्रतिभावान बच्चों को मुफ़्त में प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवा रहे हैं.

दोनों केंद्रों का मकसद एक ही है ग़रीब विद्यार्थियों को मुफ़्त में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराना.

सरकारी संस्था या निज़ी संस्था में नौकरी के कम अवसर के डर से बच्चे मदरसे छोड़ रहे थे, लेकिन मौलाना वली रहमानी की इस कोशिश से यहां एक बार फिर से बच्चे पढ़ने आ रहे हैं.

कामयाब छात्र

इरफ़न अहमद, मदरसा का छात्र

ग़रीब मुस्लिम के बच्चों के लिए यह एक वरदान साबित हो रहा है.

अभ्यानंद कहते हैं, “हमारे देश में कोई भी प्रतियोगिता परीक्षा हो बहुत ज़्यादा परीक्षार्थी होने के कारण इसमें कुछ ही सफल होते हैं जिससे परीक्षार्थी काफ़ी भयभीत रहते हैं.”

रहमानी-30 में पढ़ रहे विद्यार्थियों के बारे वे कहते हैं कि वहां पढ़ रहे बच्चे काफ़ी ग़रीब हैं, लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के लिए दृढ़संकल्प हैं. अगर वे लोग ऐसा नहीं करते हैं तो समाजिक और आर्थिक रुप से पिछड़े ही रह जाएंगे.

रहमानी-30 के एक छात्र इरफ़ान आलम जिसकी उम्र मात्र 15 वर्ष है, 2011 की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. उनके पिताजी गांव में नाई हैं.

इरफ़ान आलम कहते हैं, “मैं अपनी ज़िंदगी में कुछ करना चहता हूं, कुछ बनकर दिखाना चाहता हूं.”

मौलाना वली रहमानी कहते हैं, “विद्यार्थियों का एक साथ रहना, खाना और पढ़ाई करना मदरसा का मूलमत्र है. यहां कोई भेदभाव नहीं है, सब बराबर है.”

मैं अपने ज़िंदगी में कुछ करना चहता हूं, कुछ बनकर दिखाना चाहता हूं.

इरफ़ान आलम, छात्र

रहमानी-30 के पहले बैच से सफल हुए सद्दाम अनवर अब आईआईटी दिल्ली में पढ़ाई कर रहे हैं.

सद्दाम अनवर कहते हैं, “यहां आकर मेरा सपना सच हो गया है. मैं नहीं समझता हूं कि मैं दूसरे छात्रों से अलग हूं.”

भारत में मुस्लिम समुदाय को समान्य रुप से रूढ़िवादी, ग़रीब और कम शिक्षित कहा जाता है.

लेकिन बिहार की राजधानी में एक छोटी सी पहल से ऐसी धारणाओं को तोड़नें की कोशिश की जा रही है.

भारतीय हॉकी टीम के कोच ने मांगे अधिकार

hovkeyनई दिल्ली । वल्र्ड कप में निराशाजनक प्रदर्शन को इतिहास बताते हुए भारतीय हॉकी टीम के मुख्य कोच जोस ब्रासा ने एक बार फिर टीम चयन और प्रशिक्षण फैसलों में अधिक अधिकारों की मांग की है।
स्पेन के ब्रासा ने बुधवार को हॉकी इंडिया के महासचिव नरेंद्र बत्रा, सदस्य अनुपम गुलाटी और कोच हरेंद्र सिंह के साथ लंबी बैठक की।



साढ़े चार घंटे की इस बैठक के बाद ब्रासा ने बताया कि उन्होंने भारतीय हॉकी का स्तर ऊंचा उठाने के लिए प्रोजेक्ट इंडिया तैयार किया है। उन्होंने कहा, मैंने चयन प्रक्रिया में प्रमुख कोच के लिए कुछ और अधिकारों की मांग की है। प्रमुख कोच टीम का महानिदेशक होना चाहिए। वह खिलाड़ियों और कप्तान के चयन के लिए जिम्मेदार होना चाहिए। उसे टीम के वार्षिक बजट तय करने का अधिकार मिलना चाहिए, जिनमें उपकरणों की खरीद-फरोख्त और दौरे तय करना शामिल हैं। वे पहले भी ऐसी मांगें करते रहे हैं।



इसके साथ ही ब्रासा ने कहा, मेरी टीम में खिलाड़ियों और सहयोगी स्टॉफ समान विचारों वाला होना चाहिए और उन्हें मुझ पर भरोसा होना चाहिए। उन्होंने दावा किया कि भारत में हॉकी में जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप किया जाता है, जबकि यूरोपीय देशों में केवल एक संस्था होती है, जो खेल पर नियंत्रण रखती है।



हालांकि, खेल मंत्रालय के पास अंतिम अधिकार मौजूद है लेकिन वह हस्तक्षेप नहीं करता है। उन्होंने कहा, भारत में हमारे पास हॉकी इंडिया और भारतीय खेल प्राधिकरण हैं, लेकिन मुझे कई बार यह पता नहीं होता कि किससे बात करनी है।– पूर्व स्पेनिश खिलाड़ी अब भारतीय हॉकी में घरेलू ढांचे की वकालत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि घरेलू हॉकी को चार वर्गो अंडर-14,16,18 और अंडर-23 में बांटा जाए व इन खिलाड़ियों की आयु पर सख्त निगरानी रखी जाए।

गुरुवार, 18 मार्च 2010

कितना किसको होगा फायदा (केंद्रीय कर्मचारियों)

नई दिल्ली. महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी को भले ही सरकार कोई राहत नहीं दे पाई हो लेकिन अपने 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों का महंगाई भत्ता (डीए) बढ़ाने का फैसला कर लिया है। कैबिनेट की शुक्रवार को हुई बैठक में महंगाई भत्ता आठ फीसदी बढ़ाकर 27 से 35 फीसदी कर दिया गया है। बढ़े महंगाई भत्ते का लाभ पेंशनभोगियों को भी मिलेगा। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, डीए की बढ़ी किस्त एक जनवरी से लागू हो सकती है। इससे कर्मचारियों को बढ़ती महंगाई से कुछ राहत मिल सकती है।

जानकारों के अनुसार इस बढ़ोतरी से सरकार पर छह हजार करोड़ रूपए का बोझ बढ़ेगा।

कितना किसको होगा फायदा

वेतनमान -- फायदा

4440--355
7440--595
8700--696
15600--1248
20200--1616
34000--2720
39100--3128

भोलाराम का जीव( हरिशंकर परसाई)



ऐसा कभी नहीं हुआ था. धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थानअलॉट' करते रहे थे. पर ऐसा कभी नहीं हुआ था.

सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर पर रजिस्टर देख रहे थे. गलती पकड़ में ही नहीं रही थी. आखिर उन्होंने खीझ कर रजिस्टर इतने जोर से बन्द किया कि मक्खी चपेट में गई. उसे निकालते हुए वे बोले - "महाराज, रिकार्ड सब ठीक है. भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ, पर यहाँ अभी तक नहीं पहुँचा."

धर्मराज ने पूछा - "और वह दूत कहाँ है?"

"महाराज, वह भी लापता है."

इसी समय द्वार खुले और एक यमदूत बदहवास वहाँ आया. उसका मौलिक कुरूप चेहरा परिश्रम, परेशानी और भय के कारण और भी विकृत हो गया था. उसे देखते ही चित्रगुप्त चिल्ला उठे - "अरे, तू कहाँ रहा इतने दिन? भोलाराम का जीव कहाँ है?"

यमदूत हाथ जोड़ कर बोला - "दयानिधान, मैं कैसे बतलाऊं कि क्या हो गया. आज तक मैंने धोखा नहीं खाया था, पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया. पाँच दिन पहले जब जीव ने भोलाराम का देह त्यागा, तब मैंने उसे पकड़ा और इस लोक की यात्रा आरम्भ की. नगर के बाहर ज्यों ही मैं उसे लेकर एक तीव्र वायु-तरंग पर सवार हुआ त्यों ही वह मेरी चंगुल से छूट कर जाने कहाँ गायब हो गया. इन पाँच दिनों में मैंने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला, पर उसका कहीं पता नहीं चला."

धर्मराज क्रोध से बोला - "मूर्ख ! जीवों को लाते-लाते बूढ़ा हो गया फिर भी एक मामूली बूढ़े आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दिया."

दूत ने सिर झुका कर कहा - "महाराज, मेरी सावधानी में बिलकुल कसर नहीं थी. मेरे इन अभ्यस्त हाथों से अच्छे-अच्छे वकील भी नहीं छूट सके. पर इस बार तो कोई इन्द्रजाल ही हो गया."

चित्रगुप्त ने कहा- "महाराज, आजकल पृथ्वी पर इस प्रकार का व्यापार बहुत चला है. लोग दोस्तों को कुछ चीज़ भेजते हैं और उसे रास्ते में ही रेलवे वाले उड़ा लेते हैं. होजरी के पार्सलों के मोजे रेलवे अफसर पहनते हैं. मालगाड़ी के डब्बे के डब्बे रास्ते में कट जाते हैं. एक बात और हो रही है. राजनैतिक दलों के नेता विरोधी नेता को उड़ाकर बन्द कर देते हैं. कहीं भोलाराम के जीव को भी तो किसी विरोधी ने मरने के बाद खराबी करने के लिए तो नहीं उड़ा दिया?"

धर्मराज ने व्यंग्य से चित्रगुप्त की ओर देखते हुए कहा - "तुम्हारी भी रिटायर होने की उमर गई. भला भोलाराम जैसे नगण्य, दीन आदमी से किसी को क्या लेना-देना?"

इसी समय कहीं से घूमते-घामते नारद मुनि यहाँ गए. धर्मराज को गुमसुम बैठे देख बोले - "क्यों धर्मराज, कैसे चिन्तित बैठे हैं? क्या नरक में निवास-स्थान की समस्या अभी हल नहीं हुई?"

धर्मराज ने कहा - "वह समस्या तो कब की हल हो गई. नरक में पिछले सालों में बड़े गुणी कारीगर गए हैं. कई इमारतों के ठेकेदार हैं जिन्होंने पूरे पैसे लेकर रद्दी इमारतें बनाईं. बड़े बड़े इंजीनियर भी गए हैं जिन्होंने ठेकेदारों से मिलकर पंचवर्षीय योजनाओं का पैसा खाया. ओवरसीयर हैं, जिन्होंने उन मजदूरों की हाजिरी भर कर पैसा हड़पा जो कभी काम पर गए ही नहीं. इन्होंने बहुत जल्दी नरक में कई इमारतें तान दी हैं. वह समस्या तो हल हो गई, पर एक बड़ी विकट उलझन गई है. भोलाराम नाम के एक आदमी की पाँच दिन पहले मृत्यु हुई. उसके जीव को यह दूत यहाँ ला रहा था, कि जीव इसे रास्ते में चकमा देकर भाग गया. इस ने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला, पर वह कहीं नहीं मिला. अगर ऐसा होने लगा, तो पाप पुण्य का भेद ही मिट जाएगा."

नारद ने पूछा - "उस पर इनकमटैक्स तो बकाया नहीं था? हो सकता है, उन लोगों ने रोक लिया हो."

चित्रगुप्त ने कहा - "इनकम होती तो टैक्स होता. भुखमरा था."

नारद बोले - "मामला बड़ा दिलचस्प है. अच्छा मुझे उसका नाम पता तो बताओ. मैं पृथ्वी पर जाता हूँ."

चित्रगुप्त ने रजिस्टर देख कर बताया - "भोलाराम नाम था उसका. जबलपुर शहर में धमापुर मुहल्ले में नाले के किनारे एक डेढ़ कमरे टूटे-फूटे मकान में वह परिवार समेत रहता था. उसकी एक स्त्री थी, दो लड़के और एक लड़की. उम्र लगभग साठ साल. सरकारी नौकर था. पाँच साल पहले रिटायर हो गया था. मकान का किराया उसने एक साल से नहीं दिया, इस लिए मकान मालिक उसे निकालना चाहता था. इतने में भोलाराम ने संसार ही छोड़ दिया. आज पाँचवाँ दिन है. बहुत सम्भव है कि अगर मकान-मालिक वास्तविक मकान-मालिक है तो उसने भोलाराम के मरते ही उसके परिवार को निकाल दिया होगा. इस लिए आप को परिवार की तलाश में काफी घूमना पड़ेगा."

मां-बेटी के सम्मिलित क्रन्दन से ही नारद भोलाराम का मकान पहचान गए.

द्वार पर जाकर उन्होंने आवाज लगाई - "नारायण! नारायण!" लड़की ने देखकर कहा- "आगे जाओ महाराज."

नारद ने कहा - "मुझे भिक्षा नहीं चाहिए, मुझे भोलाराम के बारे में कुछ पूछ-ताछ करनी है. अपनी मां को जरा बाहर भेजो, बेटी!"

भोलाराम की पत्नी बाहर आई. नारद ने कहा - "माता, भोलाराम को क्या बीमारी थी?"

"क्या बताऊँ? गरीबी की बीमारी थी. पाँच साल हो गए, पेंशन पर बैठे. पर पेंशन अभी तक नहीं मिली. हर दस-पन्द्रह दिन में एक दरख्वास्त देते थे, पर वहाँ से या तो जवाब आता ही नहीं था और आता तो यही कि तुम्हारी पेंशन के मामले में विचार हो रहा है. इन पाँच सालों में सब गहने बेच कर हम लोग खा गए. फिर बरतन बिके. अब कुछ नहीं बचा था. चिन्ता में घुलते-घुलते और भूखे मरते-मरते उन्होंने दम तोड़ दी."

नारद ने कहा - "क्या करोगी मां? उनकी इतनी ही उम्र थी."

"ऐसा तो मत कहो, महाराज ! उम्र तो बहुत थी. पचास साठ रुपया महीना पेंशन मिलती तो कुछ और काम कहीं कर के गुजारा हो जाता. पर क्या करें? पाँच साल नौकरी से बैठे हो गये और अभी तक एक कौड़ी नहीं मिली."

दुःख की कथा सुनने की फुरसत नारद को थी नहीं. वे अपने मुद्दे पर आए, "मां, यह तो बताओ कि यहाँ किसी से उन का विशेष प्रेम था, जिस में उन का जी लगा हो?"

पत्नी बोली - "लगाव तो महाराज, बाल बच्चों से ही होता है."

"नहीं, परिवार के बाहर भी हो सकता है. मेरा मतलब है, किसी स्त्री..."

स्त्री ने गुर्रा कर नारद की ओर देखा. बोली - "अब कुछ मत बको महाराज ! तुम साधु हो, उचक्के नहीं हो. जिंदगी भर उन्होंने किसी दूसरी स्त्री की ओर आँख उठाकर नहीं देखा."

नारद हँस कर बोले - "हाँ, तुम्हारा यह सोचना ठीक ही है. यही हर अच्छी गृहस्थी का आधार है. अच्छा, माता मैं चला."

स्त्री ने कहा - "महाराज, आप तो साधु हैं, सिद्ध पुरूष हैं. कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि उन की रुकी हुई पेंशन मिल जाए. इन बच्चों का पेट कुछ दिन भर जाए."

नारद को दया गई थी. वे कहने लगे - "साधुओं की बात कौन मानता है? मेरा यहाँ कोई मठ तो है नहीं. फिर भी मैं सरकारी दफ्तर जाऊँगा और कोशिश करूंगा."

वहाँ से चल कर नारद सरकारी दफ़्तर पहुँचे. वहाँ पहले ही से कमरे में बैठे बाबू से उन्होंने भोलाराम के केस के बारे में बातें कीं. उस बाबू ने उन्हें ध्यानपूर्वक देखा और बोला - "भोलाराम ने दरख्वास्तें तो भेजी थीं, पर उन पर वज़न नहीं रखा था, इसलिए कहीं उड़ गई होंगी."

नारद ने कहा - "भई, ये बहुत सेपेपर-वेट' तो रखे हैं. इन्हें क्यों नहीं रख दिया?"

बाबू हँसा - "आप साधु हैं, आपको दुनियादारी समझ में नहीं आती. दरख्वास्तेंपेपरवेट' से नहीं दबतीं. खैर, आप उस कमरे में बैठे बाबू से मिलिए."

नारद उस बाबू के पास गए. उस ने तीसरे के पास भेजा, तीसरे ने चौथे के पास चौथे ने पांचवे के पास. जब नारद पच्चीस-तीस बाबुओं और अफ़सरों के पास घूम आए तब एक चपरासी ने कहा - "महाराज, आप क्यों इस झंझट में पड़ गए. अगर आप साल भर भी यहाँ चक्कर लगाते रहे, तो भी काम नहीं होगा. आप तो सीधे बड़े साहब से मिलिए. उन्हें खुश कर दिया तो अभी काम हो जाएगा."

नारद बड़े साहब के कमरे में पहुँचे. बाहर चपरासी ऊँघ रहा था. इसलिए उन्हें किसी ने छेड़ा नहीं. बिनाविजिटिंग कार्ड' के आया देख साहब बड़े नाराज हुए. बोले - "इसे कोई मन्दिर वन्दिर समझ लिया है क्या? धड़धड़ाते चले आए! चिट क्यों नहीं भेजी?"

नारद ने कहा - "कैसे भेजता? चपरासी सो रहा है."

"क्या काम है?" साहब ने रौब से पूछा.

नारद ने भोलाराम का पेंशन केस बतलाया.

साहब बोले- "आप हैं बैरागी. दफ़्तरों के रीति-रिवाज नहीं जानते. असल में भोलाराम ने गलती की. भई, यह भी एक मन्दिर है. यहाँ भी दान पुण्य करना पड़ता है. आप भोलाराम के आत्मीय मालूम होते हैं. भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं. उन पर वज़न रखिए."

नारद ने सोचा कि फिर यहाँ वज़न की समस्या खड़ी हो गई. साहब बोले - "भई, सरकारी पैसे का मामला है. पेंशन का केस बीसों दफ्तरों में जाता है. देर लग ही जाती है. बीसों बार एक ही बात को बीस जगह लिखना पड़ता है, तब पक्की होती है. जितनी पेंशन मिलती है उतने की स्टेशनरी लग जाती है. हाँ, जल्दी भी हो सकती है मगर..." साहब रुके.

नारद ने कहा - "मगर क्या?"

साहब ने कुटिल मुसकान के साथ कहा, "मगर वज़न चाहिए. आप समझे नहीं. जैसे आपकी यह सुन्दर वीणा है, इसका भी वज़न भोलाराम की दरख्वास्त पर रखा जा सकता है. मेरी लड़की गाना बजाना सीखती है. यह मैं उसे दे दूंगा. साधु-सन्तों की वीणा से तो और अच्छे स्वर निकलते हैं."

नारद अपनी वीणा छिनते देख जरा घबराए. पर फिर संभल कर उन्होंने वीणा टेबिल पर रख कर कहा - "यह लीजिए. अब जरा जल्दी उसकी पेंशन ऑर्डर निकाल दीजिए."

साहब ने प्रसन्न्ता से उन्हें कुर्सी दी, वीणा को एक कोने में रखा और घण्टी बजाई. चपरासी हाजिर हुआ.

साहब ने हुक्म दिया - बड़े बाबू से भोलाराम के केस की फ़ाइल लाओ.

थोड़ी देर बाद चपरासी भोलाराम की सौ-डेढ़-सौ दरख्वास्तों से भरी फ़ाइल ले कर आया. उसमें पेंशन के कागजात भी थे. साहब ने फ़ाइल पर नाम देखा और निश्चित करने के लिए पूछा - "क्या नाम बताया साधु जी आपने?"

नारद समझे कि साहब कुछ ऊँचा सुनता है. इसलिए जोर से बोले - "भोलाराम!"

सहसा फ़ाइल में से आवाज आई - "कौन पुकार रहा है मुझे. पोस्टमैन है? क्या पेंशन का ऑर्डर गया?"

नारद चौंके. पर दूसरे ही क्षण बात समझ गए. बोले - "भोलाराम ! तुम क्या भोलाराम के जीव हो?"

"हाँ ! आवाज आई."

नारद ने कहा - "मैं नारद हूँ. तुम्हें लेने आया हूँ. चलो स्वर्ग में तुम्हारा इंतजार हो रहा है."

आवाज आई - "मुझे नहीं जाना. मैं तो पेंशन की दरख्वास्तों पर अटका हूँ. यहीं मेरा मन लगा है. मैं अपनी दरख्वास्तें छोड़कर नहीं जा सकता."